जी भर रूप पिया, पिय तेरा
जब जब जी से तुझे निहारा ..
खुद का होश कहाँ रह पाया
खुद ने खुद को सदा बिसारा ...
कोई दूर भले ही कह ले
दूरी रही कहाँ कब तुझसे ...
फलक हृदय के बने बिछावन
सदा सजा आलिंगन तुझसे ...
मन उपवन भी सदा सुगन्धित
तेरी खुशबू की यादों से ...
चाहे पूरे भले न हुए
हूँ उपकृत, तेरे वादों से ...
जितनी तू मेरी धडकन में
मैं भी उतना वहाँ बसा हूँ ..
चाहे तू कुछ कहे न कहे ,
मुझे ज्ञात, मैं रचा बसा हूँ ।
प्रमुदित मेरा कैसे जीवन ?
महका है तेरे मधुवन से..
मन तुझसे ही आमोदित है
जग जगमग तेरे नयनन से ..