30.11.08

एक पत्र श्री अमिताभ बच्चन के नाम ...

श्री बच्चन की ताज़ा पोस्ट की प्रतिक्रिया में लिखा एक खुला पत्र : सन्दर्भ : http://bigb.bigadda.com/2008/11/30/day-220/#comments

प्रिय श्री बच्चन ,


देश की वर्तमान दशा किसी से छुपी नहीं है | राजनेताओं ने जिस प्रकार शिखन्डियों सा आचरण किया, अत्यन्त अक्षम्य है | अफसोस तो तब भी बहुत हुआ जब आपके परम मित्र अमर सिंह ने बटाला हाउस प्रकरण में आतंकियों की खुल कर वक़ालत की और अपनी नग्नता उजागर कर दी | हैरत होती है जब हम सुनते हैं कि सिने -कलाकार अपने निजत्व को देश से अधिक महत्व दे रहे हैं | विभिन्न मंदिरों में आपके भ्रमण के समाचार आपने इसी ब्लोग पर बडे चटखारे लेकर लिखे | देश हित में क्या किया कभी लिखा नहीं ? क्यों ? देश का एक बडा वर्ग सिने हस्तियों से प्रेरणा लेकर गुमराह भी होता है | आप हथियार लेकर सोये इससे देश क्या ग्रहण करे ? आप अपने ब्लोग को निजत्व से मुक्त करेंगे और देश के लिये कुछ साहसपूर्ण तथा प्रेरणास्पद कार्य करेंगे यही कामना है |

सादर

आर डी सक्सेना

भोपाल

29.11.08

किस किस को कोसें

इस बार फिर मंथन का कुछ मसाला मिला है क़्वेस्ट के मंच से ..


ताज होटल और दीगर ठिकाने तो मात्र नाम भर हैं असल बात तो यह है कि हमला भारत की इज़्ज़त पर हुआ है | हमारे नपुंसक मंत्री और नेता हमें याद दिला रहे हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र की अंधेर नगरी की | लगता यही है कि नपुंसक राजा स्वयं अपनी आज्ञा से फांसी ले लेंगे | कुछ विचार इन दो दिनों में क़्वेस्ट पर अभिमत व्यक्त करते हुए यहां के लायक लगे | बांचेंगे तो शोक के स्थान पर आक्रोश पाएंगे | कबीरा खडा बज़ार में लिये लुकाठी हाथ ! जो घर बारै आपना चलै हमारे साथ !!

शिवराज पाटिल को बहुत बहुत बधाई कि अपने समय में आतंकवादी हमलों का रिकार्ड तोड़ पाने में सफल रहे हैं ! शिवराज, डटे रहो, पाकिस्तान तुम्हारे साथ है !! इसके अलावा, लगे हाथों अर्जुन सिंह, मुलायम सिंह , लालू , राम विलास को भी बधाई दे दी जाए !

आपको हैरानी होगी यह जानकर कि नव भारत टाइम्स में कुवैत से एक मुस्लिम पाठक ने तो यहां तक व्यक्त किया है कि श्री हेमंत करकरे को मारना हिंदुओं की चाल है क्योंकि श्री करकरे मालेगांव विस्फोटों की जांच कर रहे थे | देश का गृह मंत्री यदि नपुंसक हों तो देश की ऐसी दुर्गति कोई आश्चर्य नहीं |

शिवराज पाटिल कोई इकलोते मंत्री ऐसे हों ऐसा नही है | इतिहास में देश बेंचने वाले अनेक जयचंद हुए हैं | आज भी बिन पेंदी के राजनेताओं का खासा जमघट है | परम आदरणीय श्री लालू यादव्, मुलायम सिंह, अर्जुन सिंह, अमर सिंह और राम विलास पासवान हमारे देश के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं जिन पर राष्ट्र साम्राज्ञी सोनिया गांधी को गर्व है | मन मोहन के लाडले ऐसे नेताओं को प्रणाम जिनके ब्रह्म वाक्यों के कारण ही हमारा देश आतंकियों से होने वाली मौतों के सारे रिकार्ड तोड सका है | हम इस दिशा में सर्वोपरि हैं | मोहन चंद शर्मा को तो अमर / अर्जुन पहले ही दोषी बता चुके हैं | सवाल यह कि हम प्रणाम किसको करें ? दिवंगत को या अमर - अर्जुन को ?

हाल ही में पुनः मीडिया का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार उजागर हुआ है | वह बिना सेना या कमांडो से परामर्श लिये वह सब दिखाती रही जो आतंकवादियों के लिये हितकारी था | टी आर पी की चाह में देश का अहित मीडिया के लिये कोई नयी बात नहीं रह गई है | ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय पर भी बडा दायित्व आन पडा है |

ज्योतिषी कहते हैं : "जब मुंबई आतंकवादियों के निशाने पर थी तब कर्क लग्न चल रहा था। लग्न में केतु द्वितीय मारक भाव में शत्रु सूर्य की राशि पर शनि महाराज विराजमान थे। शनि की लग्नेश चंद्र पर तृतीय पूर्ण दृष्टि थी। चंद्र लग्नेश होकर चतुर्थ में शुक्र की तुला राशि पर था जो कि उसकी शत्रु राशि है। चतुर्थ भाव जनता का है वही भवन का है और आतंकवाद ने इन पर ही निशाना बनाया। "

उनका आगे कहना है : "यहाँ पर मंगल, सूर्य, बुध तीनों शनि के नक्षत्र अनुराधा में हैं। वहीं शु्क्र सुखेश होकर छठे भाव में है। यही कारण है कि आतंकवादी हमला हुआ। "

अब बताइए ये जानकारी हमारे किस काम की ?

इसमे आश्चर्य की कोई बात नही ; ज्योतिष का चाव ही कुछ ऐसा है | ज्योतिष की विशेषता है कि यह हमें वर्तमान से दूर ले जाता है जहां स्वप्न बिकते हों | किसी समय सिर्फ़ भारतीय फिल्में ही सपनों की सौदागरी करती थीं आज बाज़ार में ज्योतिष की भी भारी धूम है | किसी फोरम पर भी देख लो दो चार लोग दुकान खोले मिल ही जायेंगे | बेरोज़गारी में ये धंधा अच्छा है | कोई कसौती भी नहीं और दाम भी चौखा !!

इधर मैंने अभी अभी मानवाधिकारवादी का चश्मा पहना है | चश्मा पहनने के बाद मैं देखता हूं कि हिंदुस्तानी कमांडो बहुत ज़ुल्म कर रहे हैं उन्होंने नरीमन हाउस में 'फंसे' पाकिस्तानी चरमपंथियों को बे-रहमी से मार डाला है | ऐसा नहीं होना चाहिए था | आख़िर वे भी मानव हैं | वे बेचारे भूंखे प्यासे और गिनती के ; जबकि इधर कमांडो अनेक | यह अमानवीय है ! भारत सरकार को चाहिये कि चरमपंथियों की सुरक्षा और भोजन- पानी के पुख्ता इंतज़ाम करे | ( चश्मा अभी यथावत जारी है)

किसी ने मेरी इस राय पर आपत्ति की कि एक देश भक्त की तरह सोचा करों लेकिन्, यह मेरा दोष नही वरन चश्मे का है ! आख़िर ये मानवाधिकारवादी का चश्मा है | इस की विशेषता ही यह है कि ये चरमपंथियों पर अत्याचार नही देख सकता | ये चश्मे विदेश से आयातित होते हैं और देश के दिग्गज पहनते हैं |

चलिए, अंत में जाग सकें तो जाग वाली बात ! वरना, अखबार बाचेंगे, अफसोस ज़ाहिर करेंगे और आखिर में " होंई है सोई जो राम रूचि राखा " कहकर सो जाएंगे !!

किस किस को कोसें जब खोट अपने ही घर में हों ?



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13.11.08

राजनीति चर्चा - मौसमी बुखार या असल सरोकार ?

चुनाव का समय आते ही विभिन्न चौपालों पर राजनीति चर्चा गर्माने लगी है. आज ही इंटरनेट के एक क़्वेस्ट मंच पर किसी प्रतिभागी ने प्रश्न उठाया कि

" हमारे संविधान की बहुत ज्यादा गलत व्याख्या की गयी है, राजनेताओं ने कुछ संविधान संशोधन से इसके मूल रुप को बिगाड़ने में कोई कसर नही छोड़ी. जैसे कि आरक्षण की व्यवस्था 10 वर्ष के लिये थी, पर ये अब तक जारी है. ज्यादातर लोग कहते है कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है पर यह ग़लत है,संविधान की कुछ और ग़लत व्याख्या कोई बताने का कष्ट करे? "


यद्यपि राजनीति मेरी रूचि का विषय कदापि नही रहा और राजनेताओं की नयी जमात नें तो मानों बची खुची दिलचस्पी का सफाया सा ही कर दिया फिर भी मैंने क़्वेस्ट पर अपना मत इस प्रकार जाहिर किया कि

" व्याख्याएं किसी समय तत्कालीन परिस्थिति में बनाई जाती हैं और कालांतर में अपना औचित्य खो देतीं हैं. सब जानते हैं. राजनेता भी मूर्ख तो नहीं जो इतना भी ना समझें . परन्तु उनकी लौलुपता और उन्ही का क़ानून . जो क़ानून नागरिकों की रक्षा के लिये था, आज सत्ताधीशों को भ्रष्टाचार के दण्ड से बचने के लिये ढाल बन चुका है. ऐसे में कोई भी राजनेता नही चाहेगा कि संविधान बदला या पुनरीक्षित किया जाए. जन जागरण का स्तर उठे तो बात बने "


अन्य प्रतिभागियों में से कुछ के विचार भी कमोबेश इसी तरह की ध्वनि देते से प्रतीत हुए . प्रतिभागियों के विचार उन्ही के शब्दों में मात्राओं में सम्पादन किए बगैर पेश हैं :-

(1) " आज भारत में जो अनैतिकता व्याप्त है, वह संविधान सम्मत ही है. अब सदन के भीतर होने वाली बहस को किसी अदालत में भी चुनौती नहीं दी जा सकती. यह प्रावधान इस आशय से बनाया गया था की देश की संसद को सुप्रीम माना गया है. लेकिन इसका मतलब आज यह हो गया है कि संसद के अंदर कोई गलत काम किया जाए तो उस पर भी विशेषाधिकार का हवाला देकर पर्दा डाल दिया जाता है. स्पीकर और सुप्रीम कोर्ट के जजों को जरुरत से ज्यादा प्रभावी बनाया गया है। "

(2) "हम भारत के लोग .....वाह ? सबसे बड़ी विडंबना है हम लोगो में कि दुसरो को दोष देने में आगे रहते है पुरी दुनिया हम पर हसती है देखो भारत के लोग भारत के प्रति वफादार नही है जिस संविधान की हम अवमानना करते है, यदि उस संविधान का एक शब्द का भी मान करते तो तस्वीर ही निराली होती मेरे देश की.......... पर अफसोस्....... सविधान को ही कोसने लग जाते है अधिकार के लिये तो लड़ मरेंगे पर कर्तव्य के लिये नही ...... "

(विचार एवं बहस का विषय वेब दुनिया क़्वेस्ट से साभार )

10.11.08

उपभोक्तावादी प्यार

हिंदी क्वेस्ट के मंच पर एक शाश्वत चिरंतन और आधुनिक प्रश्न मिला कि प्यार कैसे होता है ! मेरी मान्यता है कि आधुनिक संदर्भों में प्यार, स्वार्थ से ओतप्रोत एक अनुभूति है ! जो चीज़ अच्छी लगे उसे अपना बनाने की चाह का अहसास ही प्यार है ! विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण बोध के चलते तथाकथित प्यार 'फील' होता है ! इसके लिये जितने भी धत करम किए जाते हैं वे सब 'अफेयर' कहे जाते हैं !

कुछ शब्द ठहरे हुए लगते हैं लेकिन अपने मूल भाव से काफी दूर आ चुके हैं ! जैसे धर्म, हिंदू, प्यार आदि ! आत्मीयता गल चुकी है इसीलिये प्यार की धारणा बदल चुकी है ! परिवार के सदस्यों और मित्रों के बीच वह प्यार अब कहां जो शरत-साहित्य और अन्य उत्कृष्ट उपन्यासों में पढ चुके ! और तो और, हमने प्यार की उपभोक्तावादी नयी परिभाषा गढ ली और ऐसी सारी किताबें जो पुरानी शैली का बखान करती थी अपनी लाईब्रेरी से ही हटवा दीं !

क्या यह उन्नयन का प्रतीक है ?


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गंगा अब राष्ट्रीय नदी

गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर देने से कितना सुधार हों जाने वाला है ? धूर्त हिंदू कर्मकाण्डी पंडे और अंधश्रद्धां से ओत प्रोत उनके यजमान अपनी गंदगी का घाटों पर जिस अधिकार पूर्वक विसर्जन करते हैं , करते रहेंगे उद्योग समूह, रिश्वतखोर अधिकारियों की मिथ्यानिद्रा के चलते जो रासायनिक मल गंगा में बहा रहे हैं , बहाते रहेंगे हम किस प्रकार के सुधार की अपेक्षा रखें जब सरकार हों गूंगी बहरी और अंधी और नागरिक हों बे-परवाह !!

हालांकि कुछ उम्मीद तो जगी है लोग जागें तो भला हों

विवाह और वैभव

विवाहों के उत्सव का मौसम आ गाया है फिर डी जे बजेंगे, बराती नाचेंगे, वैभव - प्रदर्शन होगा हालांकि सडकें वाधित होंगी और गुज़रना चाह रहे अनेक मज़बूर / बीमार लोग कुढेंगे भी लेकिन परवाह क्या ? धन कमाया है तो बरबाद करने के ही लिये तो शादी में न दिखाएं तो कौन जानेगा कि कुछ कमाया भी था !


कितनी उन्मुक्तता का वातावरण होगा ! मस्तीभरा !! जब घरों की औरतें भी बेड्नियों की तरह सडक पर कजरारे कजरारे करेंगी, पुरुष- स्त्री मिल कर डी जे की उत्तेजक धुनों पर कामोत्तेजक मुद्राओं का सार्वजनिक प्रदर्शन करेंगे इन सबके साथ निरपेक्ष मुद्रा में चलेंगे हाथ और सिर पर जोड लगे तारों वाली बिजली की लाल्टेन लिये वे बच्चे, जिन्हें मिलेगी डेकोरेटर मालिक की डांट कुछ रुपये और बोनस के रुप पूरी कचोरी और मिठाई की गंध !

जिनकी शादी इस ऋतु में होने जा रही है उन्हें बधाई ! !