10.4.10

सूनी किताब

तेरे फेस पर
एक बुक पढता हूँ
कभी ताज़गी
तो कभी उदासी लिये हुए ..

कभी संज़ीदगी तो कभी
वीरानगी लिये हुए..

जाने कौन सी फितरत है तेरी
कि ज़माने से मेल नही खाती
यूँ ही भरती जाती है
डायरियां
खोखले हर्फों से..

- RDS 10.04.2010