13.11.08

राजनीति चर्चा - मौसमी बुखार या असल सरोकार ?

चुनाव का समय आते ही विभिन्न चौपालों पर राजनीति चर्चा गर्माने लगी है. आज ही इंटरनेट के एक क़्वेस्ट मंच पर किसी प्रतिभागी ने प्रश्न उठाया कि

" हमारे संविधान की बहुत ज्यादा गलत व्याख्या की गयी है, राजनेताओं ने कुछ संविधान संशोधन से इसके मूल रुप को बिगाड़ने में कोई कसर नही छोड़ी. जैसे कि आरक्षण की व्यवस्था 10 वर्ष के लिये थी, पर ये अब तक जारी है. ज्यादातर लोग कहते है कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है पर यह ग़लत है,संविधान की कुछ और ग़लत व्याख्या कोई बताने का कष्ट करे? "


यद्यपि राजनीति मेरी रूचि का विषय कदापि नही रहा और राजनेताओं की नयी जमात नें तो मानों बची खुची दिलचस्पी का सफाया सा ही कर दिया फिर भी मैंने क़्वेस्ट पर अपना मत इस प्रकार जाहिर किया कि

" व्याख्याएं किसी समय तत्कालीन परिस्थिति में बनाई जाती हैं और कालांतर में अपना औचित्य खो देतीं हैं. सब जानते हैं. राजनेता भी मूर्ख तो नहीं जो इतना भी ना समझें . परन्तु उनकी लौलुपता और उन्ही का क़ानून . जो क़ानून नागरिकों की रक्षा के लिये था, आज सत्ताधीशों को भ्रष्टाचार के दण्ड से बचने के लिये ढाल बन चुका है. ऐसे में कोई भी राजनेता नही चाहेगा कि संविधान बदला या पुनरीक्षित किया जाए. जन जागरण का स्तर उठे तो बात बने "


अन्य प्रतिभागियों में से कुछ के विचार भी कमोबेश इसी तरह की ध्वनि देते से प्रतीत हुए . प्रतिभागियों के विचार उन्ही के शब्दों में मात्राओं में सम्पादन किए बगैर पेश हैं :-

(1) " आज भारत में जो अनैतिकता व्याप्त है, वह संविधान सम्मत ही है. अब सदन के भीतर होने वाली बहस को किसी अदालत में भी चुनौती नहीं दी जा सकती. यह प्रावधान इस आशय से बनाया गया था की देश की संसद को सुप्रीम माना गया है. लेकिन इसका मतलब आज यह हो गया है कि संसद के अंदर कोई गलत काम किया जाए तो उस पर भी विशेषाधिकार का हवाला देकर पर्दा डाल दिया जाता है. स्पीकर और सुप्रीम कोर्ट के जजों को जरुरत से ज्यादा प्रभावी बनाया गया है। "

(2) "हम भारत के लोग .....वाह ? सबसे बड़ी विडंबना है हम लोगो में कि दुसरो को दोष देने में आगे रहते है पुरी दुनिया हम पर हसती है देखो भारत के लोग भारत के प्रति वफादार नही है जिस संविधान की हम अवमानना करते है, यदि उस संविधान का एक शब्द का भी मान करते तो तस्वीर ही निराली होती मेरे देश की.......... पर अफसोस्....... सविधान को ही कोसने लग जाते है अधिकार के लिये तो लड़ मरेंगे पर कर्तव्य के लिये नही ...... "

(विचार एवं बहस का विषय वेब दुनिया क़्वेस्ट से साभार )