28.12.08

मेरे सपनों का भारत

(Latent Dissent के लिए उनके आमंत्रण पर आभार सहित )

हमारे देश के अनेक सूत्र वाक्यों में से एक है - 'चरैवैती-चरैवैती' अर्थात बढ़ते चलो ... बढ़ते चलो ..

पिछले कुछ सालों में रुकावटें कमोबेश उतनी ही थी जितनी आज है लेकिन हम बढ़ते रहे | रुकावटों का रूप बदलता जा रहा है और बदले रूप से बदला लेने का कोई इंतज़ाम नहीं ; ये ही फिक्र आज सभी को है | फिर भी भरोसा है कि भविष्य हमारा है |


सपने ए पी जे अब्दुल कलाम साहब ने भी देखे और जिद थी तो साकार भी किये | उनका आभार कि उनसा स्वप्नदर्शी न होता तो हम घिसट रहे होते | सपने देखना कायदे में तो उन्होंने ही सिखाया | वरना नेहरू के स्वप्न नौकरशाहों ने कालांतर में छिन्न भिन्न कर दिए | देश की औद्योगिक सम्पन्नता निस्संदेह कुछ और होती अगर हमारी बागड़ ही खेत न उजाड़ रही होती |

आज पहली ज़रुरत सत्ताधीशों के शोधन की है | इस शुद्धिकरण के हुए बगैर हमारे स्वप्न दुःस्वप्न से बेहतर नहीं हो सकते | दलगत दलदल में बटे लोग देश के बटवारे से परे कुछ सोचते हुए नहीं दीखते | उनके चश्में निजी भविष्य पर फोकस किये हुए हैं | स्वार्थ-सिद्धि से फारिग हों तो देश दीखे ! और स्वार्थ-सिद्धि से भला कोई फारिग हो सका है आज तक ?

दूसरी जरूरत देश से भाग्यवादियों और कर्मकाण्डियों को प्रतिबंधित कर देने की है | रत्न / कुण्डली / राशि / रेखाशास्त्री / अंकशास्त्री सभी वे केंकड़े हैं जो हमारी कर्मशील संभावना की टांग खींच कर पंगु बना रहे हैं | देश आध्यात्म की ऊंचाइयां फिर से छू ले लेकिन पहले आडम्बर तो छूटे | भांति भांति के विविध नाम और रूप वाले चैनल आडम्बर परोस कर आनंदित हैं क्योंकि उन्हें देशवासियों की मूर्खता पर भरोसा है और इसी से उनकी रोटी - रोजी चलती है |

देश के बारे में सभी के सपने कमोबेश यकसां होंगे | यही कि देश की विद्वता विश्व में पूजी जाए, समादृत हो | हमारी वैज्ञानिक उपलब्धियां विश्व में सराही जाएँ | ( बहुत भरोसा है हमे अपनी प्रतिभा पर ! क्षमता है , भरोसा है तो सफलता भी निश्चित है ! ) स्वप्न है कि यह देश आर्थिक क्रान्ति का अग्रदूत बने ; जहां व्यवस्थित तंत्र हो, भ्रष्टतंत्र को कोई स्थान न हो | हर कोई अपने वतन के प्रति निष्ठा संपन्न हो | वहीं दूसरी ओर, धर्म हमारा मार्ग प्रशस्त करे न कि हमें परास्त कर दे | धर्म के प्रति किसी को कोई न तो आग्रह हो और न ही दुराव ही |

अंत में, देश के प्रति हमारा स्वाभिमान हमारी सर्वोत्कृष्ट संपत्ति बन जाए इससे बड़ा स्वप्न और क्या ?

कुटिलता का आतंक

सोचा भी न था कि मालवा और मीठी यादों की जुगत में सजाया चिट्ठा आतंक और निहायत नापंसंद से विषय 'राजनीति' की दिशा ग्रहण कर लेगा |

लेकिन ऊपर की लुभावनी लीपा पोती से सजा आधुनिक संसार अंदरूनी तौर पर कितना खोखला हो चला है सोच सोच कर ही विकलता बढ़ने लगती है इसीलिये मिठास और रस से भरे शब्द, अनचाहे अनचीते ही विकलता दर्शाने लगे और आतंक / मीडिया / नेता वगैरह गिरफ्त में आ गए | भरोसा है जल्दी निजात मिल जायेगी |

एक चिंताग्रस्त मित्र नें चिंतित लोगों की चौपाल जमाने की जुगत की और इन पंक्तियों के लेखक को भी चिंतनशील समझ कर एक चिन्तालेख भेजने का न्योता भेज दिया |

ये आम भारतीय के विचार माने जा सकतें हैं | इस लिहाज़ से कहा जाए तो आम भारतीय, तथाकथित नेताओं से कुंठित है लेकिन कुछ कर नहीं पाता ; मीडिया से व्यथित है, परन्तु कुछ कर नहीं पाता ; धर्म के बदले अर्थ से क्षुब्ध है, लेकिन कुछ कह नहीं पाता | दरअसल हर दिशा में उनका बोलबाला है जिनकी बोलती बंद होनी चाहिए थी | उनका नाम गिनाएंगे तो गिनाते रह जायेंगे |

ऐसा नही कि नागरिक निष्क्रिय रहे हों, लेकिन अपनी सीमित शक्तिसंपन्नता की कारण वे नक्कारखाने की तूती भर ही तो हैं | इतने ब्लॉग, इतनी आवाज़ - पहले कभी नहीं थी | अखबारों के समाचार और विचार पर तुरत फुरत कमेन्ट, इतने पहले कभी नहीं थे | बहुत कुछ सकारात्मक भी लिखा गया लेकिन जूँ टस से मस नहीं हुई | चिंता करने वाले भले ही शहर काजी की तरह बीमार हो गए हों |

हालात बिगड़ने के पीछे के कारण बहुत हैं | मीमांसा करेंगे तो हम सबका खोखलापन और नंगापन सामने आ जायेगा | इन्हें सुधार लें तो आज से बेहतर संसार निकट अतीत में तो नहीं रहा मिलेगा |

पहला कारण है उपभोक्तावाद | अपने भौतिक सुख के चाह में स्वार्थ और स्वार्थ के आड़ में वैमनस्यता , पनपती ही है | आध्यात्म घटता है तो त्याग लुप्त होता है और दीवारें बनती हैं व बढ़ती रहती हैं | नेताओं के ह्रदय की मलीनता इसी उपभोक्तावाद की देन है | बचपन में हम नेताओं के पाठ श्रद्धा से पढ़ते थे आज अपने बच्चों को नेताओं के नाम से दूर ही रखते हैं | निष्ठा खो गयी है क्योंकि नेता कलंकित होते जा रहे हैं | देश पर हालिया आतंकी हमलों की श्रृंखला के दौरान नेताओं ने जिस तरह का बर्ताव किया वह आतंकवादियों की तुलना में ज्यादा ही हानिकारक रहा |

आलम यह कि जो धर्म का मर्म नहीं समझते वे धर्म का खेल खेलते हैं | इधर हिन्दू कर्मकान्डियो की बाढ़ है और उनका प्रदर्शन ही धर्म कहला रहा है |इसी तरह इस्लामी श्रेष्ठता लुप्त सी है | जन्नत और ख़ज़ाने के नाम पर बरगलाए गए नौज़वान दूसरी कौम को समझे वगैर नेस्तनाबूद कर देना चाहते हैं | और तुर्रा यह कि नेता आग बढाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते | चाहे वह अमर सिंह हों अर्जुन सिंह हो अंतुले हों या तोगडिया ही |

विश्वास करें या न करें, इस दुर्दशा का दूसरा प्रमुख कारण हमारा अधार्मिक हो जाना ही है | अधार्मिक अर्थात अनैतिक और आध्यात्मिकता-हीन | निर्दयता और चतुरता का बोलबाला है | प्रेम दया करूणा सह्रदयता कब स्त्रियोचित समझे जाने लगे और कब हमारी संस्कृति से लुप्त हो गए पता ही नहीं चला | जो जितना विलासी वह उतना ही सफल | पैमाने बदल गए | केबल के माध्यम से संस्कृति लीक हो जायेगी अंदेशा तो था पर लीकेज की इतनी तीव्रता का अंदाजा नहीं था | अब 'पूस की रात ' की तरह फसल की तबाही पर बेफिक्री का अहसास जल्द ही आने वाला है | जब संस्कृति ही नहीं रही तो बचाने की मशक्कत क्यों की जाए ? इधर सरकार की नींद बताती है कि नशा कितना गहरा था |

पिछले दिनों लगातार तार तार कर देने वाली खबरें आती रही ; अभी भी आ रही है | युद्ध होगा , नहीं होगा | हिन्दू आतंकवाद , मुस्लिम आतंकवाद | बुरे मुस्लिम , अच्छे मुस्लिम | कोंडालिसा राईस , गिलानी ज़रदारी | कसाब, कसाब का वकील | अंतुले, सोनिया |

इन सबसे अलग उनकी सुध तो लें जो गरीब मुम्बई के शिवाजी टर्मिनस पर दुनिया लुटा बैठे | वे क्या कहते है ? मुंबई की एक झुग्गी में रहने वाली सावित्री गुप्ता बिहार के एक छोटे से गांव से मुंबई आकर अपने पति के साथ रह रही थी अब अकेली हैं, कहती हैं, ‘‘युद्ध से कोई समाधान नहीं निकल सकता | मेरा जो जाने वाला था वो तो चला गया ; किस्मत में यही लिखा था शायद | पाकिस्तान से लड़ के क्या होगा ? असली समस्या बेरोज़गारी है | जिसने मेरे पति को मारा अगर उसके पास अच्छा रोज़गार होता तो शायद वो आतंकवादी नहीं बनता | डेढ़ लाख रूपए के लिए डेढ़ सौ लोगों को नहीं मारता | पाकिस्तान को चाहिए कि अपने युवाओं को रोज़गार दे ताकि आतंकवाद रुके |' ये वो सच्चाई है जिसे सावित्री जैसी कम पढ़ी लिखी महिला तक बखूबी समझती है | ऐसे में युद्ध और उसकी धौंस दोनों देशॉं का , दोनों कौमों का, दोनों तहज़ीबों का कितना नुकसान कर रही है सोचा है ? भरपाई शायद इतनी आसान ना हों |

हमारे देश में भी नेता अपने ओछेपन से बाज आये तो कुछ कल्याण हो |


भोपाल रविवार २८ दिसम्बर २००८

30.11.08

एक पत्र श्री अमिताभ बच्चन के नाम ...

श्री बच्चन की ताज़ा पोस्ट की प्रतिक्रिया में लिखा एक खुला पत्र : सन्दर्भ : http://bigb.bigadda.com/2008/11/30/day-220/#comments

प्रिय श्री बच्चन ,


देश की वर्तमान दशा किसी से छुपी नहीं है | राजनेताओं ने जिस प्रकार शिखन्डियों सा आचरण किया, अत्यन्त अक्षम्य है | अफसोस तो तब भी बहुत हुआ जब आपके परम मित्र अमर सिंह ने बटाला हाउस प्रकरण में आतंकियों की खुल कर वक़ालत की और अपनी नग्नता उजागर कर दी | हैरत होती है जब हम सुनते हैं कि सिने -कलाकार अपने निजत्व को देश से अधिक महत्व दे रहे हैं | विभिन्न मंदिरों में आपके भ्रमण के समाचार आपने इसी ब्लोग पर बडे चटखारे लेकर लिखे | देश हित में क्या किया कभी लिखा नहीं ? क्यों ? देश का एक बडा वर्ग सिने हस्तियों से प्रेरणा लेकर गुमराह भी होता है | आप हथियार लेकर सोये इससे देश क्या ग्रहण करे ? आप अपने ब्लोग को निजत्व से मुक्त करेंगे और देश के लिये कुछ साहसपूर्ण तथा प्रेरणास्पद कार्य करेंगे यही कामना है |

सादर

आर डी सक्सेना

भोपाल

29.11.08

किस किस को कोसें

इस बार फिर मंथन का कुछ मसाला मिला है क़्वेस्ट के मंच से ..


ताज होटल और दीगर ठिकाने तो मात्र नाम भर हैं असल बात तो यह है कि हमला भारत की इज़्ज़त पर हुआ है | हमारे नपुंसक मंत्री और नेता हमें याद दिला रहे हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र की अंधेर नगरी की | लगता यही है कि नपुंसक राजा स्वयं अपनी आज्ञा से फांसी ले लेंगे | कुछ विचार इन दो दिनों में क़्वेस्ट पर अभिमत व्यक्त करते हुए यहां के लायक लगे | बांचेंगे तो शोक के स्थान पर आक्रोश पाएंगे | कबीरा खडा बज़ार में लिये लुकाठी हाथ ! जो घर बारै आपना चलै हमारे साथ !!

शिवराज पाटिल को बहुत बहुत बधाई कि अपने समय में आतंकवादी हमलों का रिकार्ड तोड़ पाने में सफल रहे हैं ! शिवराज, डटे रहो, पाकिस्तान तुम्हारे साथ है !! इसके अलावा, लगे हाथों अर्जुन सिंह, मुलायम सिंह , लालू , राम विलास को भी बधाई दे दी जाए !

आपको हैरानी होगी यह जानकर कि नव भारत टाइम्स में कुवैत से एक मुस्लिम पाठक ने तो यहां तक व्यक्त किया है कि श्री हेमंत करकरे को मारना हिंदुओं की चाल है क्योंकि श्री करकरे मालेगांव विस्फोटों की जांच कर रहे थे | देश का गृह मंत्री यदि नपुंसक हों तो देश की ऐसी दुर्गति कोई आश्चर्य नहीं |

शिवराज पाटिल कोई इकलोते मंत्री ऐसे हों ऐसा नही है | इतिहास में देश बेंचने वाले अनेक जयचंद हुए हैं | आज भी बिन पेंदी के राजनेताओं का खासा जमघट है | परम आदरणीय श्री लालू यादव्, मुलायम सिंह, अर्जुन सिंह, अमर सिंह और राम विलास पासवान हमारे देश के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं जिन पर राष्ट्र साम्राज्ञी सोनिया गांधी को गर्व है | मन मोहन के लाडले ऐसे नेताओं को प्रणाम जिनके ब्रह्म वाक्यों के कारण ही हमारा देश आतंकियों से होने वाली मौतों के सारे रिकार्ड तोड सका है | हम इस दिशा में सर्वोपरि हैं | मोहन चंद शर्मा को तो अमर / अर्जुन पहले ही दोषी बता चुके हैं | सवाल यह कि हम प्रणाम किसको करें ? दिवंगत को या अमर - अर्जुन को ?

हाल ही में पुनः मीडिया का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार उजागर हुआ है | वह बिना सेना या कमांडो से परामर्श लिये वह सब दिखाती रही जो आतंकवादियों के लिये हितकारी था | टी आर पी की चाह में देश का अहित मीडिया के लिये कोई नयी बात नहीं रह गई है | ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय पर भी बडा दायित्व आन पडा है |

ज्योतिषी कहते हैं : "जब मुंबई आतंकवादियों के निशाने पर थी तब कर्क लग्न चल रहा था। लग्न में केतु द्वितीय मारक भाव में शत्रु सूर्य की राशि पर शनि महाराज विराजमान थे। शनि की लग्नेश चंद्र पर तृतीय पूर्ण दृष्टि थी। चंद्र लग्नेश होकर चतुर्थ में शुक्र की तुला राशि पर था जो कि उसकी शत्रु राशि है। चतुर्थ भाव जनता का है वही भवन का है और आतंकवाद ने इन पर ही निशाना बनाया। "

उनका आगे कहना है : "यहाँ पर मंगल, सूर्य, बुध तीनों शनि के नक्षत्र अनुराधा में हैं। वहीं शु्क्र सुखेश होकर छठे भाव में है। यही कारण है कि आतंकवादी हमला हुआ। "

अब बताइए ये जानकारी हमारे किस काम की ?

इसमे आश्चर्य की कोई बात नही ; ज्योतिष का चाव ही कुछ ऐसा है | ज्योतिष की विशेषता है कि यह हमें वर्तमान से दूर ले जाता है जहां स्वप्न बिकते हों | किसी समय सिर्फ़ भारतीय फिल्में ही सपनों की सौदागरी करती थीं आज बाज़ार में ज्योतिष की भी भारी धूम है | किसी फोरम पर भी देख लो दो चार लोग दुकान खोले मिल ही जायेंगे | बेरोज़गारी में ये धंधा अच्छा है | कोई कसौती भी नहीं और दाम भी चौखा !!

इधर मैंने अभी अभी मानवाधिकारवादी का चश्मा पहना है | चश्मा पहनने के बाद मैं देखता हूं कि हिंदुस्तानी कमांडो बहुत ज़ुल्म कर रहे हैं उन्होंने नरीमन हाउस में 'फंसे' पाकिस्तानी चरमपंथियों को बे-रहमी से मार डाला है | ऐसा नहीं होना चाहिए था | आख़िर वे भी मानव हैं | वे बेचारे भूंखे प्यासे और गिनती के ; जबकि इधर कमांडो अनेक | यह अमानवीय है ! भारत सरकार को चाहिये कि चरमपंथियों की सुरक्षा और भोजन- पानी के पुख्ता इंतज़ाम करे | ( चश्मा अभी यथावत जारी है)

किसी ने मेरी इस राय पर आपत्ति की कि एक देश भक्त की तरह सोचा करों लेकिन्, यह मेरा दोष नही वरन चश्मे का है ! आख़िर ये मानवाधिकारवादी का चश्मा है | इस की विशेषता ही यह है कि ये चरमपंथियों पर अत्याचार नही देख सकता | ये चश्मे विदेश से आयातित होते हैं और देश के दिग्गज पहनते हैं |

चलिए, अंत में जाग सकें तो जाग वाली बात ! वरना, अखबार बाचेंगे, अफसोस ज़ाहिर करेंगे और आखिर में " होंई है सोई जो राम रूचि राखा " कहकर सो जाएंगे !!

किस किस को कोसें जब खोट अपने ही घर में हों ?



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13.11.08

राजनीति चर्चा - मौसमी बुखार या असल सरोकार ?

चुनाव का समय आते ही विभिन्न चौपालों पर राजनीति चर्चा गर्माने लगी है. आज ही इंटरनेट के एक क़्वेस्ट मंच पर किसी प्रतिभागी ने प्रश्न उठाया कि

" हमारे संविधान की बहुत ज्यादा गलत व्याख्या की गयी है, राजनेताओं ने कुछ संविधान संशोधन से इसके मूल रुप को बिगाड़ने में कोई कसर नही छोड़ी. जैसे कि आरक्षण की व्यवस्था 10 वर्ष के लिये थी, पर ये अब तक जारी है. ज्यादातर लोग कहते है कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है पर यह ग़लत है,संविधान की कुछ और ग़लत व्याख्या कोई बताने का कष्ट करे? "


यद्यपि राजनीति मेरी रूचि का विषय कदापि नही रहा और राजनेताओं की नयी जमात नें तो मानों बची खुची दिलचस्पी का सफाया सा ही कर दिया फिर भी मैंने क़्वेस्ट पर अपना मत इस प्रकार जाहिर किया कि

" व्याख्याएं किसी समय तत्कालीन परिस्थिति में बनाई जाती हैं और कालांतर में अपना औचित्य खो देतीं हैं. सब जानते हैं. राजनेता भी मूर्ख तो नहीं जो इतना भी ना समझें . परन्तु उनकी लौलुपता और उन्ही का क़ानून . जो क़ानून नागरिकों की रक्षा के लिये था, आज सत्ताधीशों को भ्रष्टाचार के दण्ड से बचने के लिये ढाल बन चुका है. ऐसे में कोई भी राजनेता नही चाहेगा कि संविधान बदला या पुनरीक्षित किया जाए. जन जागरण का स्तर उठे तो बात बने "


अन्य प्रतिभागियों में से कुछ के विचार भी कमोबेश इसी तरह की ध्वनि देते से प्रतीत हुए . प्रतिभागियों के विचार उन्ही के शब्दों में मात्राओं में सम्पादन किए बगैर पेश हैं :-

(1) " आज भारत में जो अनैतिकता व्याप्त है, वह संविधान सम्मत ही है. अब सदन के भीतर होने वाली बहस को किसी अदालत में भी चुनौती नहीं दी जा सकती. यह प्रावधान इस आशय से बनाया गया था की देश की संसद को सुप्रीम माना गया है. लेकिन इसका मतलब आज यह हो गया है कि संसद के अंदर कोई गलत काम किया जाए तो उस पर भी विशेषाधिकार का हवाला देकर पर्दा डाल दिया जाता है. स्पीकर और सुप्रीम कोर्ट के जजों को जरुरत से ज्यादा प्रभावी बनाया गया है। "

(2) "हम भारत के लोग .....वाह ? सबसे बड़ी विडंबना है हम लोगो में कि दुसरो को दोष देने में आगे रहते है पुरी दुनिया हम पर हसती है देखो भारत के लोग भारत के प्रति वफादार नही है जिस संविधान की हम अवमानना करते है, यदि उस संविधान का एक शब्द का भी मान करते तो तस्वीर ही निराली होती मेरे देश की.......... पर अफसोस्....... सविधान को ही कोसने लग जाते है अधिकार के लिये तो लड़ मरेंगे पर कर्तव्य के लिये नही ...... "

(विचार एवं बहस का विषय वेब दुनिया क़्वेस्ट से साभार )

10.11.08

उपभोक्तावादी प्यार

हिंदी क्वेस्ट के मंच पर एक शाश्वत चिरंतन और आधुनिक प्रश्न मिला कि प्यार कैसे होता है ! मेरी मान्यता है कि आधुनिक संदर्भों में प्यार, स्वार्थ से ओतप्रोत एक अनुभूति है ! जो चीज़ अच्छी लगे उसे अपना बनाने की चाह का अहसास ही प्यार है ! विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण बोध के चलते तथाकथित प्यार 'फील' होता है ! इसके लिये जितने भी धत करम किए जाते हैं वे सब 'अफेयर' कहे जाते हैं !

कुछ शब्द ठहरे हुए लगते हैं लेकिन अपने मूल भाव से काफी दूर आ चुके हैं ! जैसे धर्म, हिंदू, प्यार आदि ! आत्मीयता गल चुकी है इसीलिये प्यार की धारणा बदल चुकी है ! परिवार के सदस्यों और मित्रों के बीच वह प्यार अब कहां जो शरत-साहित्य और अन्य उत्कृष्ट उपन्यासों में पढ चुके ! और तो और, हमने प्यार की उपभोक्तावादी नयी परिभाषा गढ ली और ऐसी सारी किताबें जो पुरानी शैली का बखान करती थी अपनी लाईब्रेरी से ही हटवा दीं !

क्या यह उन्नयन का प्रतीक है ?


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गंगा अब राष्ट्रीय नदी

गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर देने से कितना सुधार हों जाने वाला है ? धूर्त हिंदू कर्मकाण्डी पंडे और अंधश्रद्धां से ओत प्रोत उनके यजमान अपनी गंदगी का घाटों पर जिस अधिकार पूर्वक विसर्जन करते हैं , करते रहेंगे उद्योग समूह, रिश्वतखोर अधिकारियों की मिथ्यानिद्रा के चलते जो रासायनिक मल गंगा में बहा रहे हैं , बहाते रहेंगे हम किस प्रकार के सुधार की अपेक्षा रखें जब सरकार हों गूंगी बहरी और अंधी और नागरिक हों बे-परवाह !!

हालांकि कुछ उम्मीद तो जगी है लोग जागें तो भला हों

विवाह और वैभव

विवाहों के उत्सव का मौसम आ गाया है फिर डी जे बजेंगे, बराती नाचेंगे, वैभव - प्रदर्शन होगा हालांकि सडकें वाधित होंगी और गुज़रना चाह रहे अनेक मज़बूर / बीमार लोग कुढेंगे भी लेकिन परवाह क्या ? धन कमाया है तो बरबाद करने के ही लिये तो शादी में न दिखाएं तो कौन जानेगा कि कुछ कमाया भी था !


कितनी उन्मुक्तता का वातावरण होगा ! मस्तीभरा !! जब घरों की औरतें भी बेड्नियों की तरह सडक पर कजरारे कजरारे करेंगी, पुरुष- स्त्री मिल कर डी जे की उत्तेजक धुनों पर कामोत्तेजक मुद्राओं का सार्वजनिक प्रदर्शन करेंगे इन सबके साथ निरपेक्ष मुद्रा में चलेंगे हाथ और सिर पर जोड लगे तारों वाली बिजली की लाल्टेन लिये वे बच्चे, जिन्हें मिलेगी डेकोरेटर मालिक की डांट कुछ रुपये और बोनस के रुप पूरी कचोरी और मिठाई की गंध !

जिनकी शादी इस ऋतु में होने जा रही है उन्हें बधाई ! !

16.9.08

अनुपम माँ !!



माँ मैं तुमको क्या उपमा दूं ।
जग की सब उपमाएं छोटी
स्वर्ग की बातें होती झूठी
जग का निर्माता विश्व - विधाता
ईश्वर भी तुमसे कम है,
फिर मैं तुमको क्या उपमा दूं ॥

मुझे गढने वाली उस माँ को नमन जो स्मृति रुप में सदैव जागृत है, उपस्थित है ; वैसे ही, जैसे मेरे शैशव और बाल्य काल मे थीं , मुझे दिशा और संस्कार देती हुई सी !

माँ के जैसा न तो मुझे आज़ तक कोई ग्रंथ मिला ना ही गुरु । वह विलक्षण थी । प्रभु से एक यही याचना है कि जगत की माया कभी मुझे ऐसा खुदगर्ज़ ना बना दे कि माँ विस्मृत हो जाये !!

माँ की याद से बडी और मूल्यवान कोई सम्पत्ति ही नही !! उस रत्न का मोल मेरे अतिरिक्त और कौन जानेगा !!

नमन ..

10.2.08

MALAV PUTR Pt Umakant and Ramakant Gundecha

I always feel proud of being born in Malwa. This time, the divine theme of Dhrupad strengthened the feeling. Dhrupad is the most ancient style of Hindustani classical music that has survived until today in its original form. The Dhrupad tradition is a major heritage of Indian culture. The nature of Dhrupad music is spiritual. Seeking not to entertain, but to induce feelings of peace and contemplation in the listener.

Last month, Bhopal witnessed a great concert on Dhrupad. MALAV PUTR (The sons of Malwa) Pt Umakant and Ramakant Gundecha organized a concert in Bharat Bhawan to pay tribute to his guru Ustad Zia Fariduddin Dagar on his 75th birth day. Gundecha bros are such divine and high personalities that I don’t have enough strength and authority to say anything about them. However, as my tribute to them, I scribble a few words, on the basis of information compiled from different sources.

Pt Umakant and Ramakant Gundecha are India’s leading exponents of the Dhrupad style of Indian classical music, and are the most active young performers in that style in Indian and international circuits. Born in heart of Malwa i.e., Ujjain (MP- Central India), both were initiated into music by their parents. They received conventional university educations while also studying music under the renowned Dhrupad vocalist Ustad Zia Fariduddin Dagar, and also with the late Ustad Zia Mohiuddin Dagar (the distinguished performer of Rudra Veena) at the Dhrupad Kendra in Bhopal under Guru Shishya Parampara .

During the celebration, Ustad Zia Fariduddin Dagar wished great divine success for his these renowned pupils , besides others. There was an excellent presentation of a poetry of Mahadevi Verma in Drupad style by the pupils of Drupad Kendra Bhopal.

The Gundecha Brothers have sung Hindi poetry by Tulsidas, Kabir, Padmakar, and Nirala in the Dhrupad style and have recorded more than 25 cassettes / CDs for big music sellers viz., H.M.V., Music Today, Sundaram Records, Rhythm House, Senseworldmusic-UK and some more international companies.

In addition to being an integral part of all of India’s prestigious music festivals, the Gundechas have performed along with Dhrupad Workshops at many important international festivals and institutions in USA, France, Germany, Belgium, Italy, Switzerland, U.K., Norway, U.A.E, Japan, Australia, Singapore, Bangladesh, Hong Kong, Thailand, Seychelles and Taiwan etc. . They received many Scholarship / Fellowship / Awards. At present the Gundechas are teaching in Dhrupad Institute , Bhopal (founded by themselves)to many indian and international students.

WHAT IS DHRUPAD – in brief

The word Dhrupad is derived from DHRUVA the steadfast evening star that moves through our galaxy and PADA meaning poetry. According to some accounts, Dhrupad was sung in the temples, the singer facing the divinity. From this early chanting, Dhrupad evolved into a sophisticated classical form of music.

It is a form of devotional music that traces its origin to the ancient text of Sam Veda. The SAM VEDA was chanted with the help of melody and rhythm called Samgana. Gradually this developed into other vocal style called 'Chhanda' and 'Prabandha' with introduction of verse and meter. The fusion of these two elements led to the emergence of Dhrupad.

About six centuries ago, Dhrupad came to be patronized by the royal courts and its complex rendering became intended for highly sophisticated royal audiences. The compositions became more secular. Some were written in praise of the emperors; others elaborated on music itself. However the pristine nature of Dhrupad survived and even today we hear this majestic form of music performed like it was more that 500 years ago in the royal courts of the emperors and kings of India.

However, thanks to the music companies who made the rare music available at reasonable prices. We could come across the divine waves and the singers. Thanks to Gundecha ji for running the Dhrupad Sansthan at Bhopal. I am almost mesmerized with Gundecha ji and the Dhrupad as the style fills in me a supreme divinity feeling.

29.1.08

MALWI SUFI SINGER - PRAHLAD SINGH TIPANIYA

One of the most senior, most respected and very popular artistes of the Malwa belt, Tipaniya ji has travelled widely nationally and internationally to perform. He not only sings the words of mystic poets especially Kabir, he is also the head or Mathadheesh of the Kabir Panth branch (a sect of the followers of Kabir) of the area and Kabir's thought is a way of life for him.

Unlike many other performing groups of the area who have inherited the tradition of singing the saints' sayings from their ancestors, Tipaniya ji is a self taught man. By profession he is a teacher in a local school and he heard the sound of the tambur; the 5 stringed instrument that he now sings with, for the first time in 1978 as a 24 year old. He was so impressed with it that he made up his mind to learn the art of playing it and singing and so set out on his journey. Soon thereafter he started doing programs for All India Radio and has never looked back since. He has performed at the most prestigious programs all over the state, country and even done international tours. He has been honoured with countless awards over the years and has many audio and VCD albums to his credit. He performs with his brother Shri Ashok Tipaniya and a team of remarkable musicians.

In view of the commentaries being added by the singer during his performance I call him as Sufi Singer. In Malwa belt, I saw a number of bhajan singers who are also keeping the sufi tradition alive in the belt. rdsaxena@gmail.com