जी भर रूप पिया, पिय तेरा
जब जब जी से तुझे निहारा ..
खुद का होश कहाँ रह पाया
खुद ने खुद को सदा बिसारा ...
कोई दूर भले ही कह ले
दूरी रही कहाँ कब तुझसे ...
फलक हृदय के बने बिछावन
सदा सजा आलिंगन तुझसे ...
मन उपवन भी सदा सुगन्धित
तेरी खुशबू की यादों से ...
चाहे पूरे भले न हुए
हूँ उपकृत, तेरे वादों से ...
जितनी तू मेरी धडकन में
मैं भी उतना वहाँ बसा हूँ ..
चाहे तू कुछ कहे न कहे ,
मुझे ज्ञात, मैं रचा बसा हूँ ।
प्रमुदित मेरा कैसे जीवन ?
महका है तेरे मधुवन से..
मन तुझसे ही आमोदित है
जग जगमग तेरे नयनन से ..
मालव मिट्टी की सुगंध से श्रेष्ठतर इस ब्रह्माण्ड में भला कुछ और हों सकता है ?
12.11.11
कितने चेहरे
चेहरों के अन्दर हैं चेहरे
चेहरों के बाहर भी चेहरे
आते चेहरे जाते चेहरे
कैसे रंग दिखाते चेहरे ?
अपना रंग छुपाते चेहरे
झूठा रंग दिखाते चेहरे
जब-तब जंग कराते चेहरे
कितना संग निभाते चेहरे
फूलों से भी सुन्दर चेहरे
असली से भी बढकर चेहरे
फेसबुक की आभा चेहरे
प्रोफाइल की शोभा चेहरे
राजा की रंगत के चेहरे
रंकों की रंगत के चेहरे
तेजी चेहरे, मन्दी चेहरे
कारागृह में बन्दी चेहरे
कहीं पे पर्दे डाले चेहरे,
कहीं पे चमकें सच्चे चेहरे
भूखे चेहरे व्याकुल चेहरे
सच की खोज में आकुल चेहरे
चेहरों को पहचाने कौन ?
जो पहचाने वो है मौन !
जो बोले सो हो बेहाल !
नेकी कर, दरिया में डाल !
( - आर डी सक्सेना, भोपाल 10.11.2011 )
चेहरों के बाहर भी चेहरे
आते चेहरे जाते चेहरे
कैसे रंग दिखाते चेहरे ?
अपना रंग छुपाते चेहरे
झूठा रंग दिखाते चेहरे
जब-तब जंग कराते चेहरे
कितना संग निभाते चेहरे
फूलों से भी सुन्दर चेहरे
असली से भी बढकर चेहरे
फेसबुक की आभा चेहरे
प्रोफाइल की शोभा चेहरे
राजा की रंगत के चेहरे
रंकों की रंगत के चेहरे
तेजी चेहरे, मन्दी चेहरे
कारागृह में बन्दी चेहरे
कहीं पे पर्दे डाले चेहरे,
कहीं पे चमकें सच्चे चेहरे
भूखे चेहरे व्याकुल चेहरे
सच की खोज में आकुल चेहरे
चेहरों को पहचाने कौन ?
जो पहचाने वो है मौन !
जो बोले सो हो बेहाल !
नेकी कर, दरिया में डाल !
( - आर डी सक्सेना, भोपाल 10.11.2011 )
7.11.11
पटना तट पर गंग- आराधन
देश की जीवन रेखा गंगा,
देश को जीवन देती गंगा
हम पापी निष्ठुर बेटों को,
पाप से मुक्ति देती गंगा
माँ
हम चालाक चतुर हैं सारे,
पर तुमने सब दोष बिसारे
हमने तन मन और घर के मल सब
बेशर्मी से तुम पर डाले
विशाल तटों से मन वाली माँ
तुमने उफ्फ ज़रा भी न की
निज बेटों के शुष्क ह्रदय की
सब कटुताएँ , तुमने सह ली
माँ,
एक भगीरथ पुनः रचो तुम
जो ममता को आदर दे दे
पुनीत, मधुर पर कलुषित जल को
फिर निर्मलता पावन दे दे
हम कृतध्न सब कपटी सुत हैं
माँ
निर्मल नीर बहाओ तुम
मन के कलुषित प्रपंचजाल मे
शुभता भर दो,
बस जाओ तुम !
देश को जीवन देती गंगा
हम पापी निष्ठुर बेटों को,
पाप से मुक्ति देती गंगा
माँ
हम चालाक चतुर हैं सारे,
पर तुमने सब दोष बिसारे
हमने तन मन और घर के मल सब
बेशर्मी से तुम पर डाले
विशाल तटों से मन वाली माँ
तुमने उफ्फ ज़रा भी न की
निज बेटों के शुष्क ह्रदय की
सब कटुताएँ , तुमने सह ली
माँ,
एक भगीरथ पुनः रचो तुम
जो ममता को आदर दे दे
पुनीत, मधुर पर कलुषित जल को
फिर निर्मलता पावन दे दे
हम कृतध्न सब कपटी सुत हैं
माँ
निर्मल नीर बहाओ तुम
मन के कलुषित प्रपंचजाल मे
शुभता भर दो,
बस जाओ तुम !
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