शूद्र बनाम दलित बनाम हम-तुम
-------------------------------------
पौराणिक सन्दर्भों में शूद्र वर्ण के उदभव का एक सुन्दर सांकेतिक उल्लेख आता है कि वे विधाता के पग हैं ! पग, यानि स्तम्भ !
निस्संदेह, वर्ण व्यवस्था के मूल में कर्म का सिद्धांत ही रहा है ! इस नाते प्रत्येक सेवा कार्य शूद्र कर्म ही है ! हम सब कर्म के आधार पर कभी शूद्र होते हैं कभी क्षत्रिय कभी वैश्य तो कभी ब्राह्मण ! अपने जीवन के विभिन्न कालखंड हम अनेक वर्णों में ही बिताते हैं ! यदि अपनी दिनचर्या पर ही दृष्टि डालें तो हम एक दिवस में भी प्रत्येक वर्ण को ही तो जीते हैं ! इसमें जन्म आधारित या व्यक्ति आधारित अस्पर्श्यता या स्पर्श्यता का तो प्रश्न कतई है ही नहीं !
यह सत्य है कि अतीतकाल में मदांध स्वार्थी तथा निष्ठुर वर्ग द्वारा शूद्रों को अपमानित करने की बहुतेरी घटनाएं हुईं हैं ! उसका खामियाजा देश ने भुगता भी ! परन्तु ज्योतिबा फुले और महात्मा गांधी के सदुद्योग से बदलाव की जो बयार आई उसने शनैः शनैः सब कुछ बदल कर रख दिया ! अब न अस्पर्श्यता है, न ही किसी सामाजिक तिरस्कार का भाव ! अब ऊंचे ओहदे हैं, पांडित्य है , व्यापार है, प्रतिष्ठा है, नाम है ऐश्वर्य है, यानि कि थोड़े से पुरुषार्थ में सब कुछ उपलब्ध है !
यदि शुद्र वर्ण में जन्म लेना ही अपमानजनक होता तो आज संत दादूदयाल, कबीर, रैदास , संत नामदेव इतने प्रतिष्ठित न माने जाते ! राजनैतिक दुराभाव से राष्ट्र को तोड़ने के षडयंत्र तो निरंतर होते ही रहे हैं | उन्ही षडयंत्रों में से एक है, शूद्रों को दलित नाम देना ! दलित शब्द से पद-दलित होने का भाव उपजता है जो अपमानजनक है | षडयंत्र यह कि यदि दलित नाम चिर स्थायी हो गया तो शूद्र वर्ण स्वयं को अनंत काल तक उपेक्षित वंचित तथा अपमानित ही महसूस करता रहेगा । इस षड्यंत्र को अपना विवेक जाग्रत रख कर ही समझा व समाप्त किया जा सकता है !
(प्रसंगवश, ध्यान देने योग्य बात यह कि मधुराष्टकम् में शंकराचार्य ने दलित शब्द द्वैत से लिया है। उन्होंने श्रीकृष्ण को "दलितं मधुरं" कहकर संम्बोधित किया है ! )
दुष्प्रचार आधारित अनेक षड्यंत्रों में से प्रमुख है, इस वर्ग को अपने सनातन मूल से पृथक कर देना ! इसके लिए उन्हें अहिन्दू बताने की भी योजना है ! यहाँ यह समझ लेना अनिवार्य है कि हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है जिसकी अनेक धाराएं हैं, जिसे हम पंथ कहते हैं ! जैन, बौद्ध , निराकारी , वीरशैव, ब्रह्मसमाजी, आर्य समाजी इन सब धाराओं का मूल भारत की सनातनी जीवन शैली ही है ! जिसे आजकल हिंदुत्व कहा जाने लगा है वह अपभ्रंश है मूल सनातन धर्म का ! विदेशी आक्रान्ताओं ने यहाँ अपने जड़ें जमाने के लिए हमारे मूल स्वरुप को षडयंत्र पूर्वक नष्ट किया, तब वे पल्लवित हुए !
हम सब एक ही गौरवमयी सनातनी परम्परा के संवाहक हैं ! इसे समझ लेने के बाद षड्यंत्रकारियों का पाखण्ड व मिथ्या प्रचार अब और अधिक नहीं चलना चाहिए !
वन्दे भारत मातरम् !